Author: Dr. Lokesh Jain
ISBN: 9789384502928
Binding: Hardback
Year: 2020
Publisher: Agri BioVet Press
राष्ट्रीय विकास पटल पर गरीबी, बेरोजगारी, एक सामान्य किन्तु अहम् समस्या है. विशेषकर आदिवासी विस्तार में इनका स्वरुप और वयवस्थाये बदल जाती है. प्रकृति के साथ निकट का सम्बन्ध रखने वाला आदिवासी समुदाय जीवनयापन के ऐसे तौर – तरीके अपनाता रहा है जिनमे मानवीयता व स्वावलम्बन की सुवास प्रकट होती है। एक ओर इस समुदाय की जरूरतें मर्यादित थीं तो दूसरी ओर उन्हें संतुष्ट करने का हुनर भी अलग था। आदिवासी विकास के केनवास पर नीति नियामकों द्वारा वर्तमान में उनकी समस्यांओं के समाधान हेतु जो कुछ उकेरा जा रहा है ओर उसमे रंग भरने हेतु जिस तरह के प्रयास किये जा रहे है उन्हें आदिवासी समुदाय के नजरिये से देखने की जरुरत है। विकास सम्पोषित बन सके इसके लिए अंतराष्ट्रीय स्तर पर स्थानीय संभावाओं को तलाशने एवं मजबूती प्रदान करने की बात की गयी है। सम्पोषीय आजीविका प्रतिमानों में रोजगारी के ऐसे ही प्रयासों को गति प्रदान करने की जरुरत है जो पर्यावरणीय घटको के साथ एकाकार स्थापित कर सकें , स्वालम्बन के मूल्य व सामाजिक न्याय को गति प्रदान कर सकें। हमारी परम्परागत आदिवासी अर्थव्यस्था में जीवन यापन हेतु कितने तरह के हुनर प्रचलन में थे, उनके संचालन के पीछे लोक कल्याण की क्या भावनाये निहित थी ? तथा वे किस तरह से परस्पर पूरक बनकर विकेन्द्रित अर्थव्यस्था का सूत्रपात करते थे? इन्ही प्रश्नो के दायरे में आदिवासी समुदाय की सम्पोषित आजीविका की स्थिति व संभावनाओं को जानने का एक लघु किन्तु ईमानदारीपूर्ण प्रयास “आदिवासियों की आजीविका एवं सम्पोषित विकास (आदिवासी कारीगरों के पारम्परिक प्रबंधनीय – तकनिकी ज्ञान व कुशलताओं का अध्यन )” कृत में किया गया है जो सुज्ञ पाठकों के जेहन में उठाने वाली जिगसाओं को शांत करने में सक्षम सिद्ध होगी। https://agribiovet.com/product/aadivaashi-ki-aajivika-evam-samposhit-vikas/